इंडक्शन मोटर का सामान्य परिचय (Basic Introduction of Induction Motor)
इंडक्शन मोटर का कार्यकारी सिद्धांत डीसी मोटर के समान ही होता है केवल थोड़ा सा अन्तर होता है।
"जब किसी घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) में शॉर्ट सर्किटेड चालक या वाइंडिंग (short circuited conductor or winding) रखा जाता है तो चालक पर एक ऐंठन बल लगता है जो उसे घूर्णीय चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में घुमा देता है।"
रोटर उसी दिशा में घूमता है जिस दिशा में घूमने वाला चुंबकीय क्षेत्र बनता है। तथा घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र की दिशा सप्लाई के फेज सीक्वेंस (phase sequence) पर निर्भर करती है। अर्थात यदि सप्लाई का फेज सीक्वेंस बदल दे तो रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड की दिशा बदल जाएगी जिससे रोटर के घूमने की दिशा बदल जाएगी अर्थात यदि मोटर के घूमने की दिशा बदलनी है तो सप्लाई के तीनों फेजों में से कोई दो फेज बदल देंगे।
रोटर की दिशा रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड की दिशा पर ही निर्भर करती है। रोटर के घूमने की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में ही होती है, लेकिन रोटर के घूमने की गति चुंबकीय क्षेत्र की गति से कम होती है।
इंडक्शन मोटर की कार्यप्रणाली शॉर्ट सेकेंडरी (short secondary) वाले ट्रांसफार्मर के समान होती है। लेकिन सीधे ट्रांसफार्मर के समान नहीं होती है क्योंकि इंडक्शन मोटर में चालक को शॉर्ट करके रखा जाता है। इसका अर्थ है कि ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी को शॉर्ट करें उसके समान होती है।
इंडक्शन मोटर का कार्यकारी सिद्धांत म्युचुअल इंडक्शन सिद्धांत (principle of mutual induction) पर आधारित होता है।
इंडक्शन मोटर के स्टेटर और रोटर के बीच कोई वैद्युतिय संयोजन नहीं होता है। इंडक्शन मोटर का स्टेटर और रोटर विद्युत चुंबकीय प्रेरण (electromagnetic coupling) के द्वारा जुड़े रहते हैं। तथा स्टेटर व रोटर के बीच अनन्त प्रतिरोध होता है। इसका कारण यह है कि धारा सीधे रूप से नहीं गई है।
3Φ Induction Motor In Hindi |
इंडक्शन मोटर के भाग (Parts of Induction Motor): एक इंडक्शन मोटर दो मुख्य भाग होते हैं।
1. स्टेटर (Stator): इंडक्शन मोटर सिंक्रोनस मोटर और अल्टरनेटर तीनों का स्टेटर एक समान होता है।
इसमें 120° वैद्युतिक अन्तर पर 3Φ की वाइंडिंग होती है तथा इसके 6 सिरे (U1, U2, V1, V2, W1 और W2) बाहर निकलते हैं। इन 6 सिरों को स्टार या डेल्टा में जोड़कर जब 3Φ की सप्लाई दी जाती है तब यह घूर्णीय चुंबकीय क्षेत्र बनता है।
2. रोटर (Rotar): इसकी संरचना या तो शॉर्ट सर्किटेड चालक या 3Φ वाइंडिंग या वाउंड रोटर होता है।
इंडक्शन मोटर का रोटर दो तरह का होता है केज टाइप (cage type) या तो वाउंड टाइप (wound type)। अल्टरनेटर और सिंक्रोनस मोटर के रोटर की संरचना स्मूथ सिलैंडरिकल (smooth cylindrical) या सेलियंट पोल टाइप (salient pole type) होती है।
रोटर को पारस्परिक प्रेरण (म्युचुअल इंडक्शन) से आपूर्ति मिलती है। रोटर बंद सर्किट होने के कारण रोटर में धारा प्रवाह होता है जब धारा प्रवाहित होती है तो रोटर चालकों में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के कार्क स्क्रू नियम से ज्ञात की जा सकती है। जिसकी दिशा घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत होगी क्योंकि लेंज के नियम के अनुसार 'जो जिसके कारण उत्पन्न होता है उसी का विरोध करता है'।
रोटर चालकों के चुंबकीय क्षेत्र स्टेटर के घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र की वजह से ही बनता है। रोटर और स्टेटर का चालक घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र एक दूसरे का विरोध करते हैं तथा जब विरोध करता है तो चालक पर एक बल लगता है जिससे मोटर घूम जाता है।
इंडक्शन मोटर से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावली
1. सिंक्रोनस गति (Synchronous Speed): इसे स्टेटर गति या घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र की गति के नाम से जानते हैं।
"स्टेटर द्वारा निर्मित घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र की गति को सिंक्रोनस गति कहा जाता है।"
सूत्र Ns= F × 120/ P से को गति ज्ञात की जाती है उस गति को सिंक्रोनस गति कहा जाता है।
2. रोटर गति (Rotar Speed): इसे वास्तविक गति कहते हैं। इंडक्शन मोटर का रोटर हमेशा सिंक्रोनस गति से कम गति पर चलता है। यदि रोटर गति और सिंक्रोनस गति समान होगी तो टॉर्क शून्य हो जाएगा। क्योंकि रोटर में टॉर्क तभी बनेगा जब रोटर चालकों में ईएमएफ होगा या रोटर चालकों में धारा होगी। रोटर में ईएमएफ तब आता है जब अपेक्षित गति हो। क्योंकि फराडे के नियम अनुसार– कोई चालाक हो या चुंबकीय क्षेत्र हो उनके बीच जब सापेक्ष गति होती है तभी ईएमएफ उत्पन्न होता है।
सिंक्रोनस गति की गणना की जाती है जबकि रोटर गति को मापा जाता है। रोटर गति को टेकोमीटर के द्वारा मापा जाता है। रोटर गति सिंक्रोनस गति से सदैव कम होती है। यदि Ns व Nr बराबर हो तब स्लिप तथा टॉर्क दोनों शून्य हो जाता है तथा मोटर की इस अवस्था को मैग्नेटिक लॉकिंग (magnetic locking) कहां जाता है।
3. स्लिप (Slip): Ns और Nr का अंतर स्लिप कहलाता है। यह दो तरह से हो सकता है। या तो सीधे rpm में या फिर प्रतिशत में।
Slip (S)= Ns – Nr (rmp में)
4. रोटर ईएमएफ (Rotar EMF): रोटर में चुम्बकीय प्रेरण के कारण (सापेक्ष गति के कारण) रोटर चालकों में भी एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। और बंद परिपथ होने के कारण उसकी भी अपनी एक धारा चलती है इस धारा के कारण वह अपना एक चुंबकीय क्षेत्र बनता है जिसे रोटर ईएमएफ कहते हैं।
5. रोटर आवृत्ति (Rotar Frequency): रोटर में प्रेरित ईएमएफ की भी अपनी एक फ्रीक्वेंसी होती है, जो स्लिप और सप्लाई आवृत्ति पर निर्भर करती है।
Fr= S × F
रोटर में भी अपनी एक वोल्टेज उत्पन्न होती है जिसकी अपनी एक आवृत्ति होती है। जो अंशीय स्लिप या भिन्नात्मक स्लिप और सप्लाई आवृत्ति पर निर्भर करती है।
मोटर की स्टैंड स्टील पोजिशन (stand still position) अर्थात जब मोटर स्टार्ट हो रही होती है उस समय रोटर आवृत्ति और सप्लाई आवृत्ति दोनो बराबर होती है क्योंकि उस समय स्लिप का मान 1 होता है।
Fr= F क्योंकि S= 1
लेकिन बाद में जैसे-जैसे गति बढ़ती है स्लिप घटती जाती है। जिसके फलस्वरुप रोटर फ्रीक्वेंसी भी घटती जाती है।
जब मोटर फुल लोड (full load) पर चलती है तो फूल लोड पर मोटर में स्लिप 2% से 5% होता है। इसलिए रोटर फ्रीक्वेंसी भी 2% से 5% होगा। अतः रोटर में पूर्ण भार पर (at full load) आयरन लॉस (iron loss) को शून्य माना जाता है।
नोट: इंडक्शन मोटर में स्टेटर मैग्नेटिक फील्ड कहलाता है तथा रोटर चालक कहलाता है। इसमें इंड्यूस्ड ईएमएफ की दिशा फ्लेमिंग के राइट हैंड रूल (right hand rule) से ज्ञात किया जा सकता है।
इंडक्शन मोटर में चालक अर्थात रोटर की दो तरह की संरचना होती है या तो उसमें शॉर्ट सर्किट चालक होंगे या तो उसमें वाइंडिंग होगी।
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