ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन में प्रयोग होने वाले इन्सुलेटर (Types of insulator in overhead transmission line)
इस आर्टिकल में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन तथा डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में प्रयोग होने वाले इन्सुलेटर के बारे में बताया गया है। कौन सा इन्सुलेटर ट्रांसमिशन या डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में कहां प्रयोग होता है तथा इन इन्सुलेटरो की क्या विशेषता होती है। ओवरहेडलाइन में प्रयुक्त सभी इन्सुलेटरो के बारे में चित्र के माध्यम से विस्तारपूर्वक बताया गया है जिससे की आप इन इन्सुलेटरो की आसानी से पहचान कर सकते है और ये जान सकते है की कौन सा इन्सुलेटर ओवरहेड लाइन में कहां प्रयुक्त होता है।
लाइन इन्सुलेटर (Line insulator in hindi): शिरोपरि लाइन में लाइन इन्सुलेटर या लाइन विद्युतरोधी का उपयोग लाइव कंडक्टर को पकड़ना (ओवरहेड लाइन चालक तार) या चालक तार से लगे खंभे को करंट के लीकेज से रोकना है। इंसुलेटर पोर्सलीन क्ले के बने होते है तथा वातावरण से पोर्सलीन में नमी के अवशोषण को रोकने के लिए इन्हें पूर्णतः चमकदार बनाया जाता है।
Insulator In Hindi |
ओवरहेड लाइन में प्रयुक्त इन्सुलेटर के प्रकार (Types of insulator in hindi)
ओवरहेड लाइन में मुख्य रूप से प्रयोग होने वाले इन्सुलेटर के बारे में नीचे जानकारी दी जा रही है।
1. पिन इन्सुलेटर (Pin Insulator): पिन इन्सुलेटर तीन प्रकार के होते है। डबल शेड पिन इन्सुलेटर, ट्रिपलशेड पिन इन्सुलेटर और सिंगल शेड पिन इन्सुलेटर। सिंगल शेड पिन इन्सुलेटर का लो और मीडियम वोल्टेज लाइन के लिए किया जाता है तथा 3000V से अधिक वोल्टेज के लिए डबल शेड और ट्रिपल शेड पिन इन्सुलेटर का उपयोग किया जाता है।
ओवरहेड लाइन में सर्वाधिक उपयोग पिन इन्सुलेटर का किया जाता है क्योंकि इसकी संरचना सरल होती है और इसमें उच्च प्रोटेक्शन (high protection) होता है। इसके साथ ही पिन इन्सुलेटर में वैद्युतिक और यांत्रिक सामर्थ्य (electrical and mechanical strength) भी उच्च होता है। पिन इन्सुलेटर में फ्लैश ओवर वोल्टेज और पंचर वोल्टेज (flash over voltage and puncher voltage) भी उच्च होता है और यह जल्दी पंचर (puncher) नही होता है।
पिन इन्सुलेटर की विशेषता:
- पिन इन्सुलेटर का उपयोग 33केवी (33KV) तक किया जा सकता है इससे ऊपर नहीं।
- पिन इन्सुलेटर का उपयोग डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसमिशन (distribution and transmission) दोनों में किया जाता है इसके साथ ही पिन इन्सुलेटर का उपयोग सीधी लाइन (straight line) में भी किया जाता है।
2. शैकल इन्सुलेटर (Shackle Insulator): शैकल इन्सुलेटर का उपयोग कॉर्नर (corner) के पोल पर टर्मिनेशन (termination) हेतु किया जाता है। यह इन्सुलेटर पोल के क्रॉस आर्म में या पोल में सीधे वोल्ट द्वारा कसा जाता है।
शैकल इन्सुलेटर का उपयोग केवल मध्यम वोल्टेज लाइन में किया जाता है। आजकल शैकल इन्सुलेटर का उपयोग लो वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन लाइन (low voltage distribution line) में किया जा रहा है।
शैकल इन्सुलेटर की विशेषता:
- शैकल इन्सुलेटर होरीजंटल (horizontal) और वर्टिकल (vertical) दोनों स्थितियों में उपयोग किया जा सकता है।
- जहां लाइन को घुमावदार दूसरी दिशा में करना हो वहां पर शैकल इन्सुलेटर का उपयोगी होता है।
3. सस्पेंशन इन्सुलेटर (Suspension Insulator): सस्पेंशन टाइप इन्सुलेटर का उपयोग एक्स्ट्रा हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन (extra high voltage transmission line) में टावर टाइप पोल (tower type pole) के साथ किया जाता है।
सस्पेंशन इन्सुलेटर की विशेषता:
- सस्पेंशन टाइप इन्सुलेटर में अनेक डिस्क धातु (disc metal) से लिंक होकर श्रेणी संयोजन (series connection) होती है।
- प्रत्येक डिस्क 11केवी के लिए डिजाइन की जाती है। कितनी डिस्क इस्तेमाल होगी यह वर्किंग वोल्टेज (working voltage) पर निर्भर होगा। यदि लाइन का वोल्टेज 66केवी है तो 6 डिस्क सीरीज में लगाई जाती है। तथा उपयोगिता के आधार पर प्रैक्टिकली (practically) 13.5केवी के लिए होती है।
- 33केवी से ज्यादा वोल्टेज के लिए सस्पेंशन टाइप इन्सुलेटर का प्रयोग किया जाता है। इसमें लड़ी के रूप में मेटल से कुछ निश्चित संख्या में पोर्सलीन डिस्क सीरीज में जुड़ी हुई होती है।
- पिन इन्सुलेटर की तुलना में यह सस्ता होता है पिन इन्सुलेटर में जैसे–जैसे वोल्टेज का मान बढ़ता है पिन इन्सुलेटर की कीमत भी बढ़ जाती है।
- यदि एक डिस्क खराब हो जाती है तो पूरे स्ट्रिंग या लड़ी को बदलने की जरूरत नही होती है सिर्फ खराब डिस्क को बदला जा सकता है।
- सस्पेंशन टाइप इन्सुलेटर का प्रयोग सामान्यतः स्टील टावर में होता है।
4. स्ट्रेन इन्सुलेटर (Strain Insulator): स्ट्रेन इन्सुलेटर डेड एंड (dead end) पर या जहां शार्प कर्व (sharp curve) बनता है वहां लगाया जाता है। इसके साथ ही स्ट्रेन इन्सुलेटर कॉर्नर पर भी लगाया जा सकता है।
स्ट्रेन इन्सुलेटर की विशेषता:
- स्ट्रेन इन्सुलेटर उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन (high voltage transmission) में उपयोग किया जाता है तथा डेड एंड (dead end) व शार्प कर्व (sharp curve) जहां बनता है वहां लगाए जाते हैं।
- स्ट्रेन इन्सुलेटर की डिस्क ऊर्ध्वधर कक्ष में कार्य करती है जब लाइन का खिंचाव या तनाव बहुत ज्यादा होता है तो दो या दो से अधिक लड़ियों को समान्तर उपयोग किया जाता है।
5. स्टे इन्सुलेटर (Stay Insulator): स्टे इन्सुलेटर को स्ट्रेन इन्सुलेटर (strain insulator) के नाम से भी जानते हैं। यह एक प्रकार से सपोर्टिंग वायर (supporting wire) होता है जो लाइन के विपरीत दिशा में होता है।
स्टे इन्सुलेटर को सबसे आखिरी पोल पर सपोर्टिंग वायर के बीच में जमीन से 3 मीटर की ऊंचाई पर लगाते हैं। स्टे इन्सुलेटर की आकृति अंडाकार होती हैं।
स्टे इन्सुलेटर की विशेषता:
- स्टे इन्सुलेटर जमीन से 3 मीटर की ऊंचाई पर लगाए जाते है तथा लाइन के विपरीत में सपोर्टिंग वायर के रूप में लगते है।
6. पोस्ट इन्सुलेटर (Post Insulator): पोस्ट इन्सुलेटर विशेष आकृति के इन्सुलेटर होते हैं तथा ज्यादातर ये छोटे इन्सुलेटर होते है।
पोस्ट इन्सुलेटर पैनल में बस–बार (bus bar) के लिए, ड्रॉप आउट फ्यूज में और गैंग ऑपरेटेड एयर ब्रेक स्विच (Gang Operated Air Break or GOAB switch) में उपयोग किया जाता है।
पोस्ट इन्सुलेटर की विशेषता:
- पोस्ट इन्सुलेटर छोटे इन्सुलेटर होते है। तथा बस–बार, ड्रॉप आउट फ्यूज और गैंग ऑपरेटेड एयर ब्रेक स्विच में लगते हैं।
- इस प्रकार के इन्सुलेटर 11केवी, 22केवी और 33केवी की रेंज में मिलते है।
7. डिस्क इन्सुलेटर (Disc Insulator): डिस्क इन्सुलेटर का उपयोग 3.3केवी तक किया जाता है। डिस्क इन्सुलेटर चमकरदार पोर्सलीन या दृढ़ ग्लास का बना हुआ होता है।
यह निम्न प्रकार के होते है।
i. टंगऔर क्लैविस प्रकार (tongue and clevis type)
ii. बॉल और साकेट टाइप (ball and socket type)
iii. ठंडे मौसम के लिए इन्सुलेटर (insulator for cold climate)
लाइन इन्सुलेटर के गुण (Properties of line insulator)
A. एक लाइन इन्सुलेटर में निम्नलिखित गुण होना चाहिए।
B. अर्थ लीकेज करंट से बचाव के लिए इन्सुलेटर उच्च प्रतिरोध का होना चाहिए।
C. पंचर स्ट्रेंथ और फ्लैश ओवर के बीच उच्च अनुपात होना चाहिए।
D. हाई इलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को उच्च बनाने के लिए इन्सुलेटर का उच्च रिलेटिव परमिटिविटी (high relative permittivity) होता है।
E. इन्सुलेटर कंडक्टर का लोड, हवा का दबाव सह सके इसके लिए ये उच्च यांत्रिक सामर्थ्य (high mechanical strength) वाले होने चाहिए।
F. इन्सुलेटर मटेरियल छिद्रमुक्त (non-porous) तथा अशूद्धता से मुक्त होना चाहिए अन्यथा permittivity कम हो जाती है।
- इन्सुलेटर को बनाने के लिए पोर्सलीन का उपयोग किया जाता है लेकिन कुछ सीमित स्थानों पर ग्लास (glass), स्टेटाइट (steatite) और विशेष मिश्रित वाली सामग्री (special composition materials) का भी प्रयोग किया जाता है।
FAQ:
प्रश्न: क्रीपेज दूरी (creepage distance) क्या होती है?
उत्तर: ठोस इंसुलेटिंग सामग्री (solid insulating material) का सतह के साथ दूरी क्रीपेज दूरी कहलाता है।
क्रीपेज दूरी एरिया (area) पर निर्भर करता है।
i. क्लीन एरिया (clean area): 16mm/kv
ii. मोडरेटली पोल्यूटेड एरिया (moderately polluted area): 20mm/kv
iii. इंडस्ट्रियल एरिया (industrial area): 22mm/kv
iv. हेवली पोल्यूटेड एरिया (heavelly polluted area): 25mm/kv
प्रश्न: 11केवी लाइन के लिए क्लीन एरिया में क्रीपेज दूरी क्या होगी?
उत्तर: 11 × 16= 176mm
प्रश्न: ओवरहेड लाइन में प्रयुक्त होने वाले इन्सुलेटर सामान्यतः किसके बनाए जाते है?
उत्तर: पोर्सलीन क्ले का
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