Domestic Wiring System In Hindi |
- सामान्य सर्किट 5A लोड के लिए जैसे— ट्यूब लाइट, उद्दीप्त लैंप, सीलिंग फैन इत्यादि। सामान्य सर्किट में लाइट और पंखा 5A का सॉकेट को रखते है इसमें 1.5mm स्क्वायर के एल्यूमीनियम तार का प्रयोग किया जाता है।
- पावर सर्किट 15A से 32A तक के लोड के लिए जैसे— फ्रिज, गीजर, हीटर, इत्यादि। यह सर्किट 15A लोड या उससे अधिक के लोड के लिए बनाते है। इस सर्किट के द्वारा एसी, कूलर, फ्रिज, हीटर, वाशिंग मशीन, इमर्सन रॉड इत्यादि को चलाने के लिए प्रयोग करते है।
वायरिंग के प्रकार (Types of wiring)— वायरिंग सामान्यतः दो प्रकार की होती है।
1. अस्थाई वायरिंग। उदाहरण— फ्लेक्सिबल केबल वायरिंग (flexible cable wiring), क्लिट वायरिंग (cleat wiring)
2. स्थाई वायरिंग। उदाहरण— केसिंग कैपिन वायरिंग (casing caping wiring), बेटन वायरिंग (batten wiring), कंड्यूट पाइप वायरिंग (conduit pipe wiring), लेड शीथ वायरिंग (lead sheath wiring)
घरेलू वायरिंग करने की कई विधियां है जिसमे से आजकल कई विधियां पुरानी हो चुकी है अर्थात कम प्रयोग में लाई जा रही है या प्रयोग में ही नही लाई जाती है।
वायरिंग करने की विधियां (Wiring method in hindi)— वायरिंग करने की निम्नलिखित विधियां प्रचलित है।
1. क्लीट वायरिंग (Cleat wiring)— यह वायरिंग की अस्थाई विधि है। यह वायरिंग ज्यादातर नमी वाले स्थानों पर या जहां सुन्दरता मायने नहीं रखता ऐसे स्थानों पर प्रयुक्त की जाती है। इसमें तार को लगाने हेतु आधार के रूप में पोर्सलिन की बनी हुई दो मार्गी (two way) या तीन मार्गी (three way) क्लीट का उपयोग किया जाता है।
जब क्लीट दीवार पर लगाते है तो 2 क्लीट के बीच 60cm की दूरी होनी चाहिए। वायरिंग के दौरान लटकने वाली सामग्री को यांत्रिक खीचाव से बचाने हेतु कार्ड ग्रिप (card grip) या अंडर नॉटेड गांठ (under knought) लगा देना चाहिए। इस प्रकार की वायरिंग में VIR केबल या पीवीसी केबल (pvc cable) का उपयोग किया जाता है।
क्लीट वायरिंग के लाभ (Advantage of cleat wiring)—
A. यह विधि सबसे सरल और सस्ती विधि है।
B. इसमें केबल को आसानी से बदला जा सकता है।
C. इसमें वायरिंग के दौरान बची हुई सामग्री को पुनः प्रयोग मे लाया जा सकता है।
क्लीट वायरिंग की हानियां (Disadvantage of cleat wiring)—
A. इस प्रकार की वायरिंग देखने में थोड़ा भद्दा लगती है इसलिए ऐसे स्थानों पर प्रयोग नही की जा सकती है जहां सुन्दरता मायने रखता है।
B. इस वायरिंग के केबल खुले होते है जिसके कारण यांत्रिक क्षति पहुचने की संभावना ज्यादा रहती है।
C. इस प्रकार की वायरिंग की जल्दी खराब होने की संभावना रहती है।
D. क्लीट वायरिंग में केबल डायरेक्ट वातावरण के संपर्क में आती है जिससे विभिन्न प्रकार के मौसम के प्रभाव पड़ने के कारण यह वायरिंग धुआं, तेल या नमी युक्त स्थानो पर जल्दी खराब हो जाती है।
2. वुडेन केसिंग केपिंग वायरिंग (Wooden casing capping wiring)— इसमें लकड़ी के केसिंग कई प्रकार के अलग–अलग खांचे बने होते है। इन्ही खांचे से होते हुए केबल को ले जाया जाता है। लकड़ी के केबल में जितने खांचे होते है उतनी ही केबल को इस केसिंग से ले जाया जा सकता है। लकड़ी की केसिंग केपिंग में 2 या 3 खांचे होते हैं जबकि पीवीसी में सिंगल खांचा होता है।
पीवीसी केसिंग को दीवार पर रावल प्लग (rawal plug tool) द्वारा लगाते हैं। इसमें किसी जंक्शन बॉक्स (junction box), एल्बो (elbow) या ज्वाइंट्स (joints) की आवश्यकता नहीं होती हैं।
लकड़ी की केसिंग में तार को लगाने के बाद ऊपर से कैपिंग से ढक दिया जाता है। नमी व दीमक से युक्त स्थानों पर इसके केसिंग को पोर्सलिन पर कसा जाता है। इस वायरिंग सिस्टम में लकड़ी का अधिक प्रयोग होने के कारण यह विधि ज्यादा खर्चीली होती है। इसके साथ–साथ इसमें ज्यादा दक्ष होने की आवश्यकता होती है। तथा यह प्रणाली नमी युक्त स्थानों पर अनुपयुक्त होती है। क्योंकि लकड़ी का नमी युक्त स्थानों पर जल्दी से खराब होने की संभावना होती है। यही कारण है कि वायरिंग की यह विधि आजकल प्रयोग नही की जाती है।
वुडेन केसिंग केपिंग वायरिंग के लाभ (Advantage of wooden casing capping wiring)—
A. यह वायरिंग लेड शीथ वायरिंग तथा कंड्यूट पाइप विधि वायरिंग से सस्ती होती है।
B. यह वायरिंग आसानी से की जा सकती है तथा किसी कारणवश तार बदलने की आवश्यकता होती है तो आसानी से तार बदला जा सकता है।
C. इसमें दोष की स्थिति का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
D. इसमें केबिलो की परस्पर दूरी होने से फॉल्ट की संभावना बहुत ही कम होती है। तथा यदि इस विधि में वायरिंग का निरीक्षण करना होता है तो इस वायरिंग की केपिंग को खोलकर आसानी से निरीक्षण किया जा सकता है।
E. इस वायरिंग का लाभ यह है कि यह वायरिंग बहुत जल्दी से की जा सकती है अंतः इस वायरिंग को अब लकड़ी के केसिंग केपिंग के स्थान पर आधुनिक समय में पीवीसी के केसिंग केपिंग में की जाती है।
वुडेन केसिंग केपिंग वायरिंग की हानियां (Disadvantage of wooden casing capping wiring)—
A. वुडेन केसिंग केपिंग वायरिंग को करने के लिए अधिक कार्यकुशल की आवश्यकता होती है।
B. यह वायरिंग ऐसे स्थानों पर नही की जा सकती है जहां आग लगने की संभावना अधिक होती है जैसे की— औद्योगिक क्षेत्र
C. यह वायरिंग नमी वाले स्थानों पर भी नही की जा सकती है क्योंकि लकड़ी नमी से जल्दी खराब हो जाती है।
3. बैटन वायरिंग (Batten Wiring)— इसे TRS या CTS वायरिंग भी कहते है। इसे सागौन की लकड़ी का 12.5 mm ऊंचाई तथा विभिन्न प्रकार के चौड़ाई का बैटन इस्तेमाल किया जाता है। अतः इसे बैटन वायरिंग कहते है। इस बैटन को लकड़ी की गुल्ली से दीवाल में फिक्स करते है तथा इसी बैटन पर वायरिंग केबल को लगा दिया जाता है। बैटन पर तार को स्थापित कर क्लिप से बांध दिया जाता है। इस प्रकार के वायरिंग में सीटीएस या टीआरएस प्रकार के केबल का प्रयोग किया जाता है। लेकिन अब सामान्यतः pvc cabel का प्रयोग ही किया जाता है।
- बैटन की लंबाई बढ़ाने हेतु 2 बैटन को सिरीज (series) में तथा चौड़ाई बढ़ाने हेतु 2 बैटन समान्तर (parallel) में लगाते है।
- इसे खुली वायरिंग भी कहते है तथा इसका उपयोग रसायनिक उद्योग में होता है।
- बैटन को लगाने के लिए गिट्टीया 75cm पर लगाते है।
लिंक क्लिप (link clip)— लिंक क्लिप पीतल (bronz) के बने होते है। लिंक क्लिप क्षैतिज वायरिंग (horizontal wiring) में 10cm पर तथा उर्ध्वाधर वायरिंग (vertical wiring) में 15cm पर लगाते है।
- लंबाई बढ़ाने हेतु ओवरलैप (overlap)—
• जब बैटन की चौड़ाई 12mm हो तब ओवरलैप की लंबाई 19mm होगा।
• जब बैटन की चौड़ाई 19mm हो तब ओवरलैप की लंबाई 25mm होगा।
• जब बैटन की चौड़ाई 25mm हो तब ओवरलैप की लंबाई 40mm होगा।
बैटन वायरिंग का लाभ (Advantage of batten wiring)—
A. वायरिंग की यह प्रणाली आसान व सुंदर दिखने वाली वायरिंग है।
B. इस वायरिंग में यांत्रिक शक्ति की संभावना कम होती है।
C. यदि इस वायरिंग में भू संपर्क या अर्थिंग की व्यवस्था अच्छी रखी जाए तो यह काफी हद तक टिकाऊ होता है।
बैटन वायरिंग की हानियां (Disadvantage of batten wiring)—
A. इस प्रकार की वायरिंग करने के लिए कार्यकुशलता की आवश्यकता होती है।
B. यह वायरिंग प्रणाली अन्य प्रकार की वायरिंग प्रणाली से महंगी होती है।
C. इस वायरिंग का प्रयोग उन स्थानों पर ज्यादा किया जाता है जहां केमिकल (chemical) का संपर्क ज्यादा होता है।
4. कंड्यूट पाइप वायरिंग (Conduit pipe wiring)— वर्तमान समय में यह वायरिंग सबसे ज्यादा उपयोग मे लाई जा रही है। इस वायरिंग सिस्टम में वायरिंग केबल को कंड्यूट पाइप के अंदर से ले जाया जाता है। यही कारण है कि इस वायरिंग में केबल पर नमी, यांत्रिक क्षति और आग का प्रभाव बहुत कम होता है। इस वायरिंग को ज्यादातर इंडस्ट्रियल क्षेत्र में प्रयोग में लिया जाता है। इसके साथ ही इस वायरिंग का प्रयोग घरों में भी किया जाता है। कंड्यूट पाइप वायरिंग में पीवीसी केबल का ही इस्तेमाल किया जाता है।
- कंड्यूट पाइप वायरिंग 2 तरह से की जाती है।
(i) अंडर ग्राउंड वायरिंग (Under ground wiring)— अंडरग्राऊंड वायरिंग का वर्तमान में सबसे ज्यादा उपयोग किया जा रहा है।
इसे डक्ट (duct) या कंसील्ड वायरिंग (concealed wiring) भी कहते है। यह वायरिंग इसे स्थानों पर की जाती है जहां पर सुन्दरता को बनाए रखना होता है। इसके लिए कंड्यूट पाइप को दीवार के अंदर फिक्स कर दिया जाता है ताकि कंड्यूट पाइप बाहर से दिखाई न दे।
(ii) ओपन या सर्फेस कंडक्ट वायरिंग (Open or surface conduct wiring)— सर्फेस कंडक्ट वायरिंग में पाइप को फिक्स करने के लिए सैंडल की आवश्यकता होती है।
यदि लोहे का पाइप है तो शैंडल्स भी लोहे का तथा यदि पीवीसी का पाइप है तो शैंडल्स भी पीवीसी का होना चाहिए।
- जंक्शन बॉक्स के बाद प्रथम सैंडल 30cm पर लगाते है तथा 2 सैंडल के बीच की दूरी 60cm होती है।
उभरी हुई दीवार हेतु फ्लेक्सिबल पाइप का उपयोग करते है।
इस प्रकार की वायरिंग उस स्थान पर की जाती है जहां सुन्दरता मायने नही रखती है।
कंड्यूट पाइप वायरिंग का लाभ (Advantage of conduit pipe wiring)—
A. वायरिंग की यह विधि सबसे अधिक टिकाऊ है।
B. इस वायरिंग सिस्टम में यांत्रिक क्षति और नमी से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
C. इस वायरिंग में आग का कोई खतरा नहीं होता है।
कंड्यूट पाइप वायरिंग की हानियां (Disadvantage of conduit pipe wiring)—
A. यह वायरिंग विधि सबसे महंगी विधि है।
B. इस विधि में दोष का पता लगाना तथा दोष युक्त तार को बदलना थोड़ा मुश्किल होता है।
C. इस वायरिंग के लिए ज्यादा कुशलता की आवश्यकता होती है।
5. लेड शीथ वायरिंग (Lead sheath wiring)— लेड शीथ वायरिंग का उपयोग नमी वाले स्थानो पर करते है। इस वायरिंग में अर्थिंग वायर की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात ईसीसी (ECC) अलग से साथ–साथ भेजने की आवश्यकता नहीं होती है।
वायरिंग के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें— वायरिंग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
(i) वायरिंग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की स्विच को सदैव फेज तार (phase wire) से ही जोड़ना चाहिए।
(ii) वायरिंग में लिए दीवार में कंड्यूट पाइप लगाते समय कटर को सावधानी से चलाना चाहिए।
(iii) वायरिंग के दौरान इंडियन इलेक्ट्रिकल नियम (indian electrical rule) का पालन करना चाहिए।
(iv) वायरिंग में तार को लगाते समय प्रत्येक तार को टैग (tag) कर लेना चाहिए जिससे की बाद में हमे पहचानने में आसानी रहे।
(v) वायरिंग के दौरान हाथो मे ग्लव्स जरूर पहनना चाहिए तथा सेफ्टी नियम का पालन करना चाहिए।
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