विद्युत ऊर्जा उत्पादन के प्रकार
विद्युत ऊर्जा का उत्पादन मूल रूप से दो प्रकार से किया जाता है। जिसे गैर परम्परागत विद्युत उत्पादन और परम्परागत विद्युत उत्पादन कहते है।
Source of energy in hindi |
ऊर्जा के गैर परम्परागत और परम्परागत स्रोत क्या है?—
ऊर्जा उत्पादन के गैर परम्परागत और परम्परागत स्रोत के बारे में नीचे विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है।
1. गैर परम्परागत स्रोत (Non Conventional Resource)
ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत को नव्यकरणीय या नवीकरणीय (Renewable resource) स्रोत भी कहते है। गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के अन्तर्गत पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा या सूर्य ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा, जल ऊर्जा और पवन ऊर्जा को शामिल किया जाता है। इसे नवीकरणीय अथवा अक्षय ऊर्जा (जो कभी समाप्त न हो) स्रोत भी कहते हैं।
(A) सूर्य या सौर्य ऊर्जा (Sun or Solar Energy)— सूर्य से ऊष्मा हमे विद्युत चुम्बकीय तरंगों (electro magnetic wave or EM) के रूप में मिलती है। यह ऊष्मा प्राप्त करने की प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विधि है। प्रत्यक्ष विधि में सीधे सूर्य से ऊष्मा प्राप्त करते है। उपयोग– जैसे वार्निश सुखाने में।
अप्रत्यक्ष विधि में पहले सूर्य ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में फिर ऊष्मा ऊर्जा में बदलते है। यह ऊष्मा प्राप्त करने की सबसे अच्छी विधि है क्योंकि यह प्रदूषण रहित है। इसकी आयु सर्वाधिक होती है।
सूर्य से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने से लाभ— प्रदूषण रहित है तथा आयु अधिक है।
सूर्य से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने से हानिया— ये रात में और वर्षा के दिनों में काम नही करते है। तथा इस संयंत्र को लगाने में ज्यादा क्षेत्र की आवश्यकता होती हैं। तथा विद्युत का उत्पादन भी कम होता है।
सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भारत में सबसे अच्छा क्षेत्र (दशाएं) राजस्थान है।
(B) जल ऊर्जा (Hydro or Water Energy)— इस विधि से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जल की स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में परिवर्तित करते है और इस गतिज ऊर्जा से टरबाइन चलाई जाती है। जिससे टरबाइन मैकेनिकल ऊर्जा देती है और इस मैकेनिकल पावर से विद्युत उत्पन्न किया जाता है।
जल की स्थितिज ऊर्जा → गतिज ऊर्जा → टरबाइन → मैकेनिकल ऊर्जा → विद्युत ऊर्जा
(C) पवन ऊर्जा (Wind Energy)— इस विधि का उपयोग वहा किया जाता है जहा हवा का वेग तेज होता है। हवा का वेग पवन चक्कियों को घुमाता है जिससे जेनरेटर जुड़े होते है। एक पवन चक्की से लगातार विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जनरेटर से बैटरी को चार्ज करने की व्यवस्था होती है। इस विधि से ऊर्जा प्राप्त करने का लाभ यह है की इसके रखरखाव और उत्पादन कीमत नगण्य है। यह वायु पर आधारित प्रचालन है तथा पीक लोड प्लांट की (peak load plant) श्रेणी में आता है अर्थात इनसे अस्थायी विद्युत का उत्पादन होता है। ये कभी बहुत अधिक तो कभी बहुत कम ऊर्जा का उत्पादन करते है तथा नए पिक के अनुसार बंद भी हो सकते है। इनकी स्थापना horizontal (होरीजोटल) और vertical (वर्टिकल) दोनो अक्ष में होती है।
पवन ऊर्जा के उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। इसमें शीर्ष स्थान पर क्रमश: चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी का स्थान है। भारत देश में शीर्ष पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य तमिलनाडु है।
पवन ऊर्जा से ऊर्जा प्राप्त करने से हानिया— ये अविश्वसनीय है क्योंकि हवा का दाब निश्चित नही होता और इसका उत्पादन कम ही होता है।
पवन ऊर्जा से ऊर्जा प्राप्त करने से लाभ— इनका रख रखाव और उत्पादन कीमत बहुत कम है।
(D) समुद्री ऊर्जा (Ocean Energy) — इस विधि से ऊर्जा प्राप्त करने की दो विधियां है।
1. वेव एनर्जी (Wave energy)
2. टाइडल एनर्जी (Tidal energy)
समुद्री ऊर्जा के द्वारा सबसे आसानी से ऊर्जा प्राप्त करने का प्रकार टाइडल एनर्जी (ज्वार ऊर्जा) है।
(E) भू तापीय ऊर्जा— इस विधि का उपयोग ज्वालामुखी वाले क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।
(F) बायोगैस या गोबर गैस ऊर्जा— इसमें से 70% मिथेन गैस निकलती है। मिथेन गैस जलने में बहुत सहायक होती है। बायोगैस में कचरे या मल मूत्र को सड़ाकर ईंधन तैयार किया जाता है यह गैस जलने में सहायक होती है जिसे जलाकर ऊष्मा उत्पन्न किया जाता है तथा इस ऊष्मा के द्वारा ऊर्जा प्राप्त किया जाता है।
बायोगैस या गोबर गैस ऊर्जा से लाभ— कचरे या मल मूत्र से ही विद्युत ऊर्जा का उत्पादन।
बायोगैस या गोबर गैस ऊर्जा से हानिया— इससे बहुत कम मात्रा में ही ऊर्जा का उत्पादन सम्भव है बड़े पैमाने पर करने के लिए बहुत ज्यादा कचरा की जरूरत पड़ेगी तथा बड़े एरिया में इसके संयंत्र को लगाना होगा।
2. परम्परागत स्रोत (Conventional Resource)—
इसे अनव्यकरणीय (Non renewable resource) भी कहते है। ये ऊर्जा के ऐसे स्रोत है जिनको एक बार उपयोग करने के बाद पुनः उपयोग में नही लाया जा सकता है जैसे– कोयला, प्राकृतिक तेल व गैस और परमाणु ऊर्जा इत्यादि।
(A) कोयला से विद्युत का उत्पादन — इसे जीवाश्म ईंधन की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में विद्युत का सर्वाधिक उत्पादन इसी विधि (कोयले से) किया जाता है। इस पर आधारित जीतने भी पावर प्लांट होते है उसे तापीय परियोजना (thermal power plant/थर्मल पॉवर प्लांट) के नाम से जाना जाता है।
भारत में जिस कोयले का उपयोग किया जाता है वह निम्न सल्फर और उच्च राख वाला होता है अर्थात कार्बन की मात्रा कम होती है।
भारत मे कोयले की औसत ऊर्जा 5000kj/kg है।
कोयले के प्रकार— कोयले के निम्न प्रकार प्रचलित है।
1. एंथ्रेसाइट— यह सबसे उत्तम श्रेणी का कोयला होता है।
एंथ्रेसाइट बहुत कठोर होता है अतः यह चूर्णी चूर्णीत नही किया जा सकता है जिस कारण इसका उपयोग नहीं किया जाता है।
2. पीट— पीट कोयला सबसे निम्न श्रेणी का कोयला होता है। इसमें राख की मात्रा बहुत अधिक होती है अतः उपयोग में नही किया जाता है।
3. लिग्नाइट या भूरा कोयला— उपयोग में आधार पर यह दूसरे स्थान पर आता है तथा क्वालिटी के आधार पर तीसरे स्थान पर आता है।
4. बिटुमिन या चारकोल— सर्वाधिक उपयोग बिटुमिन कोयले का ही किया जाता है। उपयोग के आधार पर यह प्रथम श्रेणी का कोयला माना जाता है।
- याद रखे एक अच्छे कोयले में मॉइश्चर (moisture/नमी या आद्रता) कम तथा कार्बन की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।
(B) परमाणु ऊर्जा (Nuclear energy/न्यूक्लियर एनर्जी)—
- इसमें ईंधन के रूप में कोई न कोई परमाणु ही लिया जाता है। जैसे U²³⁵, Pu²³⁹, Th²³² इत्यादि।
- सर्वाधिक प्रदूषण इसी विधि से होता है इसलिए इसका उपयोग सीमित मात्रा में किया जाता है।
- थोरियम (Th²³²) तथा प्लुटोनियम (Pu²³⁹) दोनो कृत्रिम ईंधन है। यूरेनियम (U²³⁵) लगभग प्राकृतिक होता है क्योंकि इसमें थोड़ी मात्रा यूरेनियम (U²³³) की मिली होती है।
(C) तेल गैस—
प्रमुख तेल ईंधन में पेट्रोलियम आता है। निम्नलिखित ईंधन को द्रव ईंधन कहा जाता है।
गैसोलिन, कैरोसिन, गैस ऑयल और डीजल ऑयल इत्यादि।
(D) गैसीय ईंधन (Gaseous Fuels)—
इस ईंधन को निम्न वर्गो में बाटा गया है।
(A) प्राकृतिक गैस (Netural Gas)— यह पृथ्वी से प्राप्त होती है इसे कुआ खोद कर पंप के माध्यम से निकाला जाता है।
(B) प्रोड्यूसर गैस (Producer Gas)— यह CO और H2 का मिश्रण होता है। तथा इसमें कुछ अंश CO2 का भी होता है।
(C) अन्य गैस— इसमें कुछ अन्य गैसे भी मिली होती है।
द्रव ईंधन के लाभ—
- इस संयंत्र का डिजाइन और ले आउट सरल होता है। इसे लगाने में ज्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होती है। तथा इसके साथ लगने वाले सहायक यंत्रों की संख्या भी कम और आकार में छोटी होती है।
- इसे शुरू करने में कम समय लगता है और कम समय में ही इसपे लोड डाल सकते है।
- इसमें नुकसान का खतरा नहीं होता है।
- इसकी कीमत कोयले की अपेक्षा कम पड़ती है।
- कोयले की अपेक्षा इसकी थर्मल दक्षता अधिक होती है।
- इसमें कम ऑपरेटिंग स्टाफ की आवश्यकता होती है।
द्रव ईंधन की हानिया— इससे निम्न पावर जेनरेट होता है।
ये महगा होता है क्योंकि इस संयंत्र को द्रव ईंधन से जैसे पेट्रोल, डीजल से चलाया जा रहा है और इन ईंधन की कीमत ज्यादा होती है।
इस आर्टिकल में गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत का महत्व, तथा परम्परागत ऊर्जा स्रोत के महत्व के बारे में बताया गया है इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के बाद आप गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत का महत्व, तथा परम्परागत और गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत मे अन्तर भी अच्छे से समझ पाएंगे। इसी तरह के आर्टिकल को पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को जरूर फॉलो करे तथा ये आर्टिकल आप लोगो को कैसा लगा इसके बारे में भी हमे कमेंट करके जरूर बताएं धन्यवाद।।
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