नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र
जब द्रव ऊर्जा में परिवर्तित होता है तो नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। नाभिकीय ऊर्जा दो प्रकार की होती है।
(1) नाभिक को न्यूट्रान की बौछार से दो छोटे नाभिक में तोड़कर (नाभिकीय विखंडन)
(2) दो छोटे नाभिक से जोड़कर (नाभिकीय संलयन)
Nuclear Power Plant |
नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की कार्यप्रणाली (Working principle of nuclear power)— परमाणु का केंद्रीय भाग जिसे नाभिक कहा जाता है, उसमे उसका समस्त भार विद्यमान होता है।
नाभिक में स्थित प्रोटान और न्यूट्रान को अलग करने से कुछ न्यूट्रान अपना द्रव्यमान खो देता है, जिससे ऊर्जा प्राप्त होती है।
इस ऊर्जा से टर्बो वाष्प तैयार की जाती है जिससे टर्बो जनरेटर चलाया जाता है। नाभिकीय शक्ति संयंत्र प्रायः आधार लोड संयंत्र (base load stations) के रूप में काम करते हैं क्योंकि ये नियत शक्ति देने के लिये सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं।
"नाभिकीय शक्ति संयंत्र (nuclear power plant) वे ताप ऊर्जा संयंत्र होते हैं जिनमें ऊष्मा एक या कई नाभिकीय भट्ठियों से प्राप्त होती है।"
Block Diagram of Nuclear Power Plant |
नाभिकीय ऊर्जा स्टेशन के लिए साइट का चुनाव (Selection of site for nuclear power station)—
नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. आबादी वाले इलाके से दूर (Distance from populated areas)— नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के लिए जन आबादी से दूर स्थान का चयन करना चाहिए क्योंकि सबसे ज्यादा प्रदूषण और विषैली गैस इसी प्लांट से निकली है।
2. जल की आवश्यकता (Availability of water)— इसमें रियेक्टर, कंडेंसर, बॉयलर में पानी की आवश्यकता होती है इसलिए पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, इसलिए ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहा पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध हो। इसमें कूलिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए साइट के पास पानी का स्रोत होना आवश्यक है।
3. यातायात— परमाणु ऊर्जा स्टेशन के लिए उचित परिवहन सुविधा होनी चाहिए ताकि अपशिष्ट निपटाने के लिए परेशानी न हो और कर्मचारियों को सुविधा हो। नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र में कम मात्रा मे ईंधन परिवहन किया जाता है।
4. लोड सेन्टर से दूरी— नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र में लोड सेन्टर से ज्यादा दूरी नही होनी चाहिए।
5. अवशिष्ट का निपटान (Disposal of waste/डिस्पोजल ऑफ वेस्ट)— नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र से बहुत विषैली गैस निकलती है इसलिए इसका waste बहुत हानिकारक होता है इस waste के disposal के लिए उचित स्थान का चयन करना चाहिए। अक्सर नाभिकीय ऊर्जा स्टेशन से निकले अवशिष्ट को जमीन में गाड़ दिया जाया है या समुद्र में फेक दिया जाता है जिससे किसी प्राणी को नुकसान न पहुंचे।
नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के भाग (Part of Nuclear Power Plant)—
नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के निम्नलिखित भाग होते है।
1. पात्र (Reactor/रिएक्टर) या प्रतिकारक— नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र का मुख्य भाग रिएक्टर पात्र होता है इसमें विखंडन क्रिया कराई जाती है। जिससे अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा का उपयोग भाप उत्पन्न करने व टरबाइन चलाने में करते है। ये कई प्रकार के होते है परन्तु ज्यादातर 2 प्रकार ही प्रचलित ही।
(A) प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर (Pressurized water reactor or PWR)— इसमें उच्च दाब और उच्च ताप पर स्ट्रीम तैयार की जाती है।
(B) बोइलिंग (Boiling water reactor or BWR)— इसमें निम्न दाब और निम्न ताप पर ऊष्मा तैयार की जाती है।
2. ईंधन (Fuel)— नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र में ईंधन के रूप में U²³⁵, U²³³, Pu²³⁹, Th²³², U²³² का उपयोग किया जाता है।
3. मंदक (Moderator)— मंदक का कार्य न्यूट्रानो की गतिज ऊर्जा को धीमा करना है। मंदक के रूप में हाइड्रोजन (hydrogen or H2 ), ड्यूटेरियम (dueritam or D2), नाइट्रोजन (nitrogen or N2), ऑक्सीजन (oxygen or O2), कार्बन (C), बेरिलियम (beryllium or Be) का उपयोग किया जाता है।
4. प्रवर्तक (Reflector)— रिएक्टर कोर में ईंधन के विखंडन से उत्पन्न न्यूट्रान बड़ी संख्या में कोर से बाहर निकलने का प्रयास करता है, इन्हे रोकने के लिए चारो ओर रिफ्लेक्टर लगाया जाता है। मंदक के सभी पदार्थ रिफ्लेक्टर में भी प्रयोग किए जाते है।
5. कन्ट्रोल छड़ (Control rod)— रिएक्टर कोर में उपजी ऊष्मा ऊर्जा इतनी अधिक मात्रा में होती है की इस पर कंट्रोल आवश्यक हो जाता है। कन्ट्रोल छड़ विखंडन के दौरान निकली ऊष्मा ऊर्जा को नियंत्रित करता है।
यह कैडियम तथा बोरान से बनती है।
6. शीतलक (Coolent)— न्यूक्लियर रिएक्टर सबसे अधिक ताप उत्पन्न करता है, इसलिए इसे ठंडा करना जरूरी होता है जिसके लिए कूलेन्ट (coolent) का प्रयोग किया जाता है।
7. रेडिएशन शील्ड (Radiation sheild)— रेडिएशन शील्ड रिएक्टर से निकलने वाली हानिकारक व विषैली गैसों को नियंत्रित या कवर करता है।
8. हीट एक्सचेंजर (Heat exchanger)— कूलेंट (ऊष्मा) हीट को हीट एक्सचेंजर को देता है और इस तरह स्टीम बनती है। हीट एक्सचेंजर को हीट देकर कूलेंट दोबारा रिएक्टर में फीड कर दिया जाता है।
9. स्टीम टरबाइन (Steam turbine)— हीट एक्सचेंजर में बनी स्टीम को स्टीम टरबाइन में वाल्व के द्वारा दिया जाता है। टरबाइन पर काम करने के बाद स्टीम कंडेंस में चली जाती है। कंडेंसर स्टीम को पानी में बदलता है और दोबारा पंप के द्वारा हीट एक्सचेंजर में पहुंचा देता है।
10. अल्टरनेटर (Alternator)— स्टीम टरबाइन से अल्टरनेटर को चलाया जाता है। जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। अल्टरनेटर का आउटपुट ट्रांसफार्मर, सर्किट ब्रेकर और आइसोलेटर से होता हुआ बस बार को दे दिया जाता है।
परमाणु रिएक्टर का वर्गीकरण—
परमाणु रिएक्टर को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
(A) न्यूट्रॉन ऊर्जा के आधार पर
1. थर्मल रिएक्टर
2. फास्ट ब्रिदर रिएक्टर
(B) ईंधन के आधार पर
1. प्राकृतिक यूरेनियम
2. समृद्ध यूरेनियम
(C) मॉडरेटर के आधार पर
1. ग्रेफाइट रिएक्टर
2. बेरेलियम रिएक्टर
(D) कुलेंट के आधार पर
1. वाटर कूल्ड रिएक्टर (साधारण या कोर जल)
(१) बायलिग वाटर रिएक्टर
(२) प्रेशराइड वाटर रिएक्टर
2. गैस कूल्ड रिएक्टर
3. लिक्विड मेटर कूल्ड रिएक्टर
4. ऑर्गेनिक लिक्विड कूल्ड रिएक्टर
(E) कोर के प्रकार के आधार पर
1. सदृश रिएक्टर (homegenous reactor)
2. असदृश रिएक्टर (heterogenous reactor)
परमाणु ऊर्जा केन्द्र (संयंत्र) के लाभ (Advantage of nuclear power station)—
1. परमाणु ऊर्जा संयंत्र में कम ईंधन की आवश्यकता होती है इसलिए परिवहन खर्च कम होता है।
2. अन्य ऊर्जा उत्पादन केंद्र की अपेक्षा इसकी स्थापना में कम जगह की आवश्यकता होती है।
3. इसका रनिंग कॉस्ट कम होता है। इसके द्वारा कम ईंधन से अधिक विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
4. आर्थिक रूप से ये बेहतर होते है।
5. इसे लोड केंद्र के पास लगाया जा सकता है। क्योंकि इसमें अन्य प्लांट की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। इससे प्राइमरी डिस्ट्रीब्यूशन का खर्चा बचता है।
6. प्राकृतिक परमाणु ईंधन के स्रोत अधिक है और कई वर्षो तक उपयोग किए जा सकते है।
7. इसके प्लांट का प्रचालन आसान होता है।
परमाणु ऊर्जा केन्द्र (संयंत्र) की हानिया (Disadvantage of nuclear power station)—
1. इसके ईंधन को धरती से निकालना कठिन होता है और ये महगे होते है।
2. अन्य प्लांट की तुलना में इसका पूंजी लागत अधिक होता है।
3. इसके निर्माण और प्रचालन के लिए कुशल कारीगर की जरूरत पड़ती है।
4. इसमें प्रयुक्त पदार्थ रेडियोएक्टिव होते है जो बहुत ही खतरनाक होते है।
5. इसका अपशिष्ट का निपटान करना एक बड़ी समस्या होती है क्योंकि ये रेडियोधर्मी पदार्थ होते है। इसे किसी गहरे गड्ढे में दबाया जाता है या समुद्र में जहा तट न हो वहा फेक जा सकता है जोकि एक कठिन कार्य होता है।
6. इसका रख रखाव और मरम्मत कार्य कठिन और महगा होता है।
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