रिले (Relay in hindi)
रिले एक सुरक्षा उपकरण (protective device/प्रोटेक्टिव डिवाइस) है जो किसी मुख्य सर्किट (main circuit) के सहायक सर्किट (auxiliary circuit) को प्रचलित करती है। इसका कार्य दोष की पहचान करना है। यह राशियों का मापन करके असामान्य स्थितियों का पता लगाने में सहायक होती है। रिले धारा, वोल्टेज, फ्रिकवेंसी, ताप, त्वरण, नमी, दोलन के द्वारा प्रचलित हो जाती है। रिले हमेशा केवल सहायक सर्किट (auxiliary circuit) को ऑपरेट करती है। यह मुख्य सर्किट (main circuit) को कभी भी ट्रिप नहीं करवाती है। इसका कार्य दोष का पता लगाना होता है दोष को रोकना नहीं।
Relay In Hindi |
रिले क्या होता है (Relay kya hota hai)— रिले एक विद्युत स्विच या कुंजी है जो एक दूसरे विद्युत परिपथ के द्वारा खोली या बंद की जाती है जो कि मुख्य परिपथ से असम्बद्ध (आइसोलेटेड) होती है। रिले की एक या एक से अधिक कुंजियाँ एक विद्युत चुम्बक की सहायता से बंद या चालू होती हैं। रिले एक सुरक्षा उपकरण (protective device/प्रोटेक्टिव डिवाइस) है जो किसी मुख्य सर्किट (main circuit) के सहायक सर्किट (auxiliary circuit) को प्रचालित करती है। रिले सर्किट में दोष की पहचान करके उसे ठीक करने का संकेत देता है रिले दोष का निवारण नही करता है।
रिले की संरचना और रिले का कार्य करने का सिद्धांत (Construction of relay & working principle in hindi)—
रिले में दो कांटेक्ट (contact) होते हैं एक को N.O कहा जाता है तथा दूसरे को N.C कहा जाता है।
N.O— N.O का अर्थ होता है Normally Open (नॉर्मली ओपन) जब रिले अप्रचलित है तब यह खुला है। फाल्ट की स्थिति में यह N.C हो जाएगा तथा ट्रिप लाइट ऑन हो जाएगी जिससे यह पता चल जाएगा कि सर्किट में दोष (fault) हो गया है।
N.C— N.C का अर्थ होता है Normally Closed (नॉर्मली क्लोज) जब रिले अप्रचलित है तब यह बंद (यहां बंद का अर्थ है closed circuit/क्लोज सर्किट) होता है। दोष की स्थिति में यह ओपन (open) हो जाएगा तथा सर्किट को जलने से बचा लेगा।
1. गति (speed)— एक रिले में गति होनी चाहिए जिससे रिले कम समय में या तुरंत प्रचलित (operate) हो जाए जिससे उपकरण को हानि ना पहुंचे।
2. चयनात्मकता (selectivity)— रिले ऐसी होनी चाहिए कि केवल दोष युक्त परिपथ का चयन करके उसे ही डिस्कनेक्ट (disconnect) करें तथा बाकी सर्किट अपना कार्य करते रहें।
3. संवेदी (sensitivity)— वास्तविक राशि को सुग्राही करके विश्वसनीय प्रचालन प्रदान करें रिले में ऐसा गुण होना चाहिए।
रिले के प्रकार (Types of relay in hindi)— रिले को कार्य और उसके प्रचालन के अनुसार कई भागो में बाटा गया है। जिनका विवरण नीचे दिया गया है।
1. प्रचालन यांत्रिकत्व के आधार पर— प्रचालन यांत्रिकत्व (operating mechanisms) के आधार पर रिले निम्नलिखित प्रकार की होती है।
(A) विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic relay)— यह रिले विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करती है इस प्रकार की रिले में एक क्वायल (coil) या सोलेनाइड (solenoid) होती है जो प्रचलित होकर N.O/N.C प्रदान करती है।
(B) यांत्रिक रिले (Mechanical Relay)— इस प्रकार के रिले में विभिन्न गियर लेवल सिस्टम से यांत्रिक विस्थापन के माध्यम से N.O/N.C परिवर्तित होता है।
(C) स्टेटिक रिले (Static Relay)— इस प्रकार की रिले में अर्धचालक (semiconductor/सेमीकंडक्टर) द्वारा चेंज ओवर (change over) किया जाता है। वर्तमान में थायरिस्टर (thyristor) सबसे ज्यादा काम में लिया जा रहा है। जिसमें 0 और 1 दो अवस्था होती है जिस पर यह ऑपरेट करता है।
2. प्रचालन समय/अभिलक्षण के आधार पर— प्रचालन समय के आधार पर रिले निम्न प्रकार की होती है।
(A) डेफिनेट टाइम रिले (definite time relay)— यह ऐसी रिले होती है जो निश्चित समय के अंदर प्रचलित होती है। जैसे– टाइमर
(B) आईडीएमटी रिले (IDMT relay)— आईडीएमटी रिले (IDMT) का पूरा नाम इनवर्स डेफीनेट मिनिमम टाइम रिले (Inverse Definite Minimum Time Relay) होता है। यह रिले रिवर्स न्यूनतम समय में प्रचालित हो जाती है।
(C) तात्कालिक रिले (instantnous relay)— इस प्रकार की रिले जब क्वायल ऊर्जित हो तब प्रचलित होती है।
3. लॉजिक के आधार पर— लॉजिक (logic) के आधार पर रिले निम्नलिखित प्रकार की होती है।
(A) डिफरेंशियल रिले (differential relay)— यह रिले दो या दो से अधिक राशियों के अन्तर पर प्रचलित होती है।
(B) अनबैलेंस रिले (unbalance relay)— इस प्रकार की रिले जब दो या दो से अधिक राशियों में असंतुलन हो तब प्रचलित होती है।
(C) दिशात्मक रिले (directional relay)— यह रिले विशेष दिशा में प्रचलित होती है इस प्रकार की रिले का उपयोग जेनरेटिंग सिस्टम में किया जाता है। जैसे– जनरेटर का रिवर्स पावर प्रोटेक्शन
(D) अर्थ दोष रिले (earth fault relay)— अर्थ दोष उत्पन्न होने पर यह रिले दोष का पता लगाती है।
(E) दूरी रिले (distance relay)— यह एक निश्चित दूरी के बाद प्रचलित होने वाली रिले है। जैसे– लिमिट स्विच
(F) नेगेटिव फेज सीक्वेंस रिले (negative phase sequence relay)— यह रिले नेगेटिव फेज सीक्वेंस पर प्रचलित हो जाती है। जैसे– पानी वाली मोटर में।
4. प्रचालन राशि के आधार पर— प्रचालन राशि के आधार पर रिले को निम्नलिखित भागो में बाटा गया है।
(A) करंट रिले (current relay)— इस प्रकार की रिले धारा के आधार पर प्रचलित होती है। जैसे– ओवर करंट रिले (over current relay), अंडर करंट रिले (under current relay)।
(B) वोल्टेज रिले (voltage relay)— इस प्रकार की रिले वोल्टेज के आधार पर प्रचलित होती है। जैसे– अंडर वोल्टेज रिले और ओवर वोल्टेज रिले।
(C) पावर रिले (power relay)— इस प्रकार की रिले पावर से प्रचलित होती है इस प्रकार की रिले का बहुत कम उपयोग किया जाता है।
(D) फ्रीक्वेंसी रिले (frequency relay)— इस प्रकार की रिले फ्रीक्वेंसी से प्रचलित होती है।
5. अनुप्रयोग (application) के आधार पर— अनुप्रयोग के आधार पर रिले के प्रकार के बारे में नीचे बताया गया है।
(A) प्राइमरी रिले (primary relay)— यह रिले सबसे पहले प्रचलित होती है तथा सुरक्षा प्रदान करती है।
(B) बैक अप रिले (back up relay)— प्राइमरी रिले के प्रचलित न होने पर या रिले प्रचलित होती है। इस रिले का उपयोग बैकप (backup) के तौर पर किया जाता है।
6. यांत्रिक रिले के प्रकार (types of mechanical relay)— यांत्रिक रिले के प्रकार निम्नलिखित है।
(A) थर्मल रिले (thermal relay)— यह रिले तापीय सिद्धांत (thermal principle) पर प्रचलित होती है। इस रिले को टाइम डिले (time delay) रिले भी कहा जाता है। अर्थात यह रिले ऑपरेट होने में थोड़ा समय लेती है। मैग्नेटिक रिले से तुलना करने पर स्लो ऑपरेट (slow operate) होती है। यह रिले गर्म होकर N.O तथा ठंडी होकर N.C बन जाती है। इस रिले के ऑपरेशन में द्विधात्विक पत्ती होती है। जैसे– कपड़े इस्त्री करने वाला प्रेस।
(B) फ्लोट रिले (float relay)— इस प्रकार की रिले गैस के आधार पर ऑपरेट (operate) होती है। अर्थात यह रिले गैसीय सिद्धांत पर कार्य करती है। जैसे– बकोल्ज रिले, वाटर लेवल में।
(C) प्रेशर स्विच (pressure switch)— यह रिले एक निश्चित दाब के बाद प्रचलित होती है।
(D) लिमिट स्विच (limit switch)— यह रिले एक लिमिट पर प्रचलित होती है।
कुछ विशेष प्रकार की रिले— कुछ विशेष प्रकार की रिले भी होती है जिनका वर्णन नीचे किया गया है।
(A) आवेग रिले (impulse relay)— इस प्रकार की रिले को जब इलेक्ट्रिकल पल्स मिलती है तो दो में से एक स्थिति पर कार्य करती है। अर्थात पल्स देने पर यदि N.O थी तो N.C हो जाएगी या N.C थी तो N.O हो जाएगी। एक मात्र ये ऐसी रिले है जो एसी (ac) और डीसी (dc) दोनों पर समान रूप से प्रचलित होती है।
(B) लैचिंग रिले (latching relay)— यह ऐसी रिले होती है जो सप्लाई न होने पर भी पूर्व ज्ञात स्थिति में प्रचालन बनाए रख सकती है।
(C) इंपेडेंस रिले (impedance relay)— यह रिले प्रतिघात कम या ज्यादा होने पर प्रचालित हो जाती है यह मीडियम ट्रांसमिशन लाइन (medium transmission line) पर प्रयोग होती है।
(D) रिएक्टेंस रिले (reactance relay)— यह रिले प्रतिघात कम या ज्यादा होने पर प्रचालित हो जाती है यह शॉर्ट ट्रांसमिशन लाइन (short transmission line) पर प्रयोग होती है।
(E) म्हो रिले (mho relay)— इस रिले को एडमिटेंस रिले (admittance relay) भी कहते हैं। यह डायरेक्शनल रिले (directional relay) की श्रेणी में आता है। इसको लॉन्ग ट्रांसमिशन लाइन (long transmission line) पर प्रयोग करते हैं।
रिले का उपयोग (Uses of relay in hindi)—
रिले विद्युतचुम्बकीय युक्ति है जो निम्नलिखित कार्यों के लिए प्रयोग में लायी जा सकती है।
रिले विद्युतचुम्बकीय युक्ति है जो निम्नलिखित कार्यों के लिए प्रयोग में लायी जा सकती है।
- एक ही नियंत्रण परिपथ द्वारा एक से अधिक परिपथों को बंद या चालू करना।
- कम शक्ति (पावर) खर्च करके अपेक्षाकृत बहुत अधिक विद्युत शक्ति को नियंत्रित करना।
- किसी परिपथ से विद्युतीय रूप से बिना जुड़े हुए भी (आइसोलेटेड रहकर) उसे नियंत्रित करने में सक्षम होना।
प्रश्न— एक रिले में निम्नलिखित में से कौन सा गुण नहीं होना चाहिए?
(अ) गति (speed)
(ब) चयनात्मकता (selectivity)
(स) संवेदी (sensitivity)
(द) जटिलता (complexity)
उत्तर— द
Thank you for share it.
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