डाटा संचार या कम्युनिकेशन (Data Communications)
"डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना डाटा संचार (data communications) कहलाता है।" ऐसी पद्धति जिसमे कैरियर तथा अन्य सम्बन्धित युक्तियां होती है जो कि डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में प्रयुक्त होती है डाटा कम्युनिकेशन सिस्टम (data communications systems) कहलाती है।
Data Communications Systems Kya Hai |
"किसी सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना संचार कहलाता है।" संचार प्रणाली में डाटा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए सिस्टम की जरूरत पड़ती है। डाटा कम्युनिकेशन की कई विधियां प्रचलित है। जैसे– टेलीग्राफी, टेलीफोनी, माइक्रोवेव, फाइबर ऑप्टिक, सैटेलाइट संचार और मोबाइल संचार इत्यादि। इन सभी विधियों से डाटा का संचार आसानी से किया जा सकता है।
डाटा कम्युनिकेशन तकनीके (Data Communications Techniques)— डाटा संचार की विधियों (data communications systems) के बारे में नीचे विस्तार पूर्वक बताया गया है।
1. टेलीग्राफी (Telegraphy)— टेलीग्राफी वह संचार तकनीक है, जिसमे लिखित शब्दो के रूप में उपलब्ध सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। टेलीग्राफी द्वारा भेजी जाने वाली सूचना को पहले कोड में कन्वर्ट किया जाता है तथा इस कोड को ट्रांसमिट (transmitt) किया जाता है। दूसरे छोर पर रिसीवर के माध्यम से इस कोड को रिसीव किया जाता है तथा प्राप्त कोड के आधार पर मूल सूचना प्राप्त की जाती है।
टेलीग्राफी में सूचना को कोड के रूप में ट्रांसमिट किया जाता है इसमें प्रत्येक कैरेक्टर (अल्फाबेट्स या डिजिट्स) के लिए एक निर्धारित कोड होता है अतः सूचना का संचरण कोड के रूप में होता है।
व्यावसायिक टेलीग्राफी में मार्स कोड का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रत्येक कैरेक्टर को डॉट या डैश के विभिन्न संयोगो से कोड किया जाता है। प्रत्येक कैरेक्टर के लिए डॉट या डैश के संयोग से बना एक कोड निर्धारित किया गया है जब भी उस कैरेक्टर को भेजना होता है तो उस कैरेक्टर का डॉट या डैश से बना कोड भेजा जाता है। याद रखे की टेलीग्राफ ट्रांसमीटर के रूप में मार्स कुंजी और टेलीग्राफ रिसीवर के रूप में मार्स साउंडर का प्रयोग किया जाता है।
2. टेलिफोनी (Telephony)— ध्वनि तरंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित करना टेलीफोनी कहलाता है। टेलिफोनी में ध्वनि तरंगों को ऑडियो फ्रीक्वेंसी विद्युत एनालॉग सिग्नल में कन्वर्ट किया जाता है तथा फिर इन्हें विद्युत ट्रांसमिशन सिस्टम पर ट्रांसमिट किया जाता है तथा रिसीवर पर इन विद्युत सिग्नलो को पुनः ध्वनि सिग्नल में बदल लिया जाता है। याद रखे की टेलिफोनी में ट्रांसमीटर के रूप में माइक्रोफोन तथा रिसीवर के रूप में लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है। माइक्रोफोन एक ट्रांसड्यूसर होता है जो ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। ट्रांसड्यूसर एक युक्ति होती है जो ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करता है।
3. डिजिटल संचार (Digital Communication)— डिजिटल संचार पद्धतियों में मॉड्यूलेटिंग सिग्नल डिजिटल होता है। इनपुट मैसेज को ट्रांसड्यूसर द्वारा विद्युत रूप में बदला जाता है। इसके पश्चात इस डाटा को बाइनरी रूप में बदला जाता है फिर इस बाइनरी डाटा को डिजिटल मॉड्यूलेटर की सहायता से बाइनरी रूप में बदल कर ट्रांसमिट किया जाता है।
रिसीवर पर सिग्नल को रिसीव करने के पश्चात नवाइस (noise) के प्रभाव को समाप्त करने के लिए उसका डीमॉड्यूलेशन किया जाता है। रिसीवर पर मौजूद डिकोडर के द्वारा सिग्नल को डिकोड करके मूल सूचना को ट्रांसड्यूसर के माध्यम से वापस प्राप्त कर लिया जाता है।
4. माइक्रोवेव संचार (Microwave Communications)— माइक्रोवेव वह विद्युत चुम्बकीय तरंगे होती है जिनकी आवृत्ति 1GHz से 300GHz तक होती है।
माइक्रोवेव में दिशीय गुण (directional properties) होता है यानी की ये प्रकाश की तरह सीधी रेखाओं में गति करता है। अतः माइक्रोवेव को प्रकाश पुंज की भाती किसी एक दिशा में बीम किया जा सकता है। यह सीधी रेखा में चलती है और अपने मार्ग में आने वाले अवरोध जैसे पर्वत, इमारते द्वारा फैलती या मुड़ती नही है। माइक्रोवेव संचार तभी सम्भव होता है जब ट्रांसमिटिग एंटीना व रिसिविंग एंटीना लाइन ऑफ साइट (line of sight) हो इसलिए "माइक्रोवेव ट्रांसमिशन को लाइन ऑफ साइट ट्रांसमिशन भी कहा जाता है।"
माइक्रोवेव संचार की रेंज सीमित होती है लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तक इसका कारण है पृथ्वी का कर्वेचर (curvature) और सिग्नल की आवृत्ति उच्च होने के कारण ग्राउंड द्वारा सिग्नल का अब्सोर्पशन (absorption) किसके कारण सिग्नल कुछ दूर तक प्रोपगेट (propagate) होने के बाद कमजोर हो जाता है। अतः माइक्रोवेव ट्रांसमिशन की रेंज बढ़ाने के लिए ट्रांसमीटर और रिसीवर के बीच रिपीटर लगाए जाते है। ट्रांसमीटर और रिसीवर के बीच रिपीटर इस प्रकार लगाते है की प्रत्येक रिपीटर सिग्नल को रिसीव करता है उसका प्रवर्धन करता है और अगले रिपीटर को रिले कर देता है परन्तु इस प्रक्रिया से दो स्टेशनों के बीच सिग्नल को ट्रांसमिट करने का खर्च बढ़ जाता है।
पृथ्वी पर विभिन्न महासागर व पर्वत होने के कारण माइक्रोवेव ट्रांसमिशन द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी को कवर करना सम्भव नही है इस समस्या से निपटने के लिए संचार उपग्रह का प्रयोग किया जाता है। जिससे संपूर्ण पृथ्वी को 3 भू–स्थिर उपग्रह की सहायता से कवर (cover) किया जा सकता है।
5. ऑप्टिकल फाइबर संचार (Optical Fibre Communication)— ऑप्टिकल फाइबर संचार वह विधि होती है जिसके द्वारा सूचना को ऑप्टिकल कैरियर तरंगों की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है।
हम जानते है की प्रकाश की गति विभिन्न माध्यमों में अलग–अलग होती है। ऑप्टिकल फाइबर में प्रकाश का बार–बार total internal reflection होता है जिससे वह फाइबर में लंबी दूरी तक ट्रैवल (travel) करता है। ऑप्टिकल फाइबर में इंजैक्शन लेजर डायोड (injection laser diode or ILD) तथा लाइट एमिटिंग डायोड (light emitting diode or LED) को ऑप्टिकल संचार में प्रकाश स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है। फोटो डेटैक्टर मॉड्यूलेटेड प्रकाश सिग्नल को पुनः विद्युत सिग्नल में बदलता है। मुख्यतः पिन डायोड (PIN diode) या एवलांच फोटो डायोड को प्रयुक्त किया जाता है।
भारत में ऑप्टिकल फाइबर का आरंभ पुणे में हुआ था जब दो टेलीफोन एक्सचेंज के मध्य फाइबर लिंक किया गया।
फाइबर ऑप्टिक संचार सिस्टम के मुख्य घटक–
- ट्रांसमीटर जिसमे प्रकाश स्रोत व सम्बन्धित ड्राइव परिपथ होते है
- ऑप्टिकल फाइबर जिनमे प्रकाश का संचरण होता है।
- रिसीवर जिसमे डिटेक्टर (dedictor), प्रवर्धक (amplifier) और अन्य परिपथ होते है।
6. सैटेलाइट संचार (Satellite Communications)— उपग्रह संचार वह विधि है जिसमे सिग्नल को उपग्रह के माध्यम से ट्रांसमीटर से रिसीवर को संचरित किया जाता है।
7. मोबाइल संचार (Mobile Communications)— मोबाइल संचार के माध्यम से किसी भी व्यक्ति से किसी भी समय संपर्क बनाया जा सकता है चाहे व्यक्ति कितनी भी दूरी पर क्यों न हो। इस पद्धति में सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र को छोटे छोटे सेल में बाट दिया जाता है। यह सेल हेक्सागोनल (hexagonal) के आकार के होते है। प्रत्येक सेल का एक बेस स्टेशन होता है। सेल के अन्दर के मोबाइल फोन का सेल के बेस स्टेशन से संपर्क बना रहता है। इस प्रकार सेल की सभी काल बेस स्टेशन के द्वारा ठीक उसी प्रकार रुट की जाती है जैसे की साधारण टेलिफोनी में लोकल एक्सचेंज करता है। भारत में मोबाइल तकनीक के लिए ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन या जीएसएम (global system for mobile communication or GSM) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
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