प्राथमिक उपचार (First Aid In Hindi)— "किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का डॉक्टर के आगमन से पूर्व किया जाने वाला उपचार प्राथमिक उपचार कहलाता है।"
First aid in hindi |
प्राथमिक उपचार की प्रक्रिया भिन्न भिन्न हो सकती है ये इस बात पर निर्भर करेगा की पीड़ित व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त किससे हुआ है जैसे बिजली का झटका, सड़क दुर्घटना, साप का काटना इत्यादि।
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प्राथमिक उपचार के लिए कार्यशाला में फर्स्ट एड बॉक्स (First Aid Box), स्ट्रेचर आदि वस्तुएं उपलब्ध होनी चाहिए।
किसी व्यक्ति को विद्युत का झटका लगने के पश्चात तुरन्त डॉक्टर को बुलाना चाहिए और तब तक पीड़ित को निम्न प्राथमिक उपचार देना चाहिए—
1. यदि पीड़ित के चारो ओर भीड़ हो तो उसे तुरन्त हटा देना चाहिए जिससे की पीड़ित को स्वच्छ हवा मिल सके।
2. यदि पीड़ित के मुंह में नकली दांत, तम्बाकू, पान मसाला या किसी भी प्रकार का खाने का कुछ समान हो तो उसे तुरन्त निकाल देना चाहिए।
3. पीड़ित के छाले अथवा जले हुए अंगो को साफ कपड़े या कागज से ढक देना चाहिए जिससे की उस स्थान पर मच्छर, मक्खी ना बैठे और पीड़ित को किसी अन्य तरह की परेशानी ना हो।
4. पीड़ित यदि किसी बंद कमरे में हो तो घर के दरवाजे और खिड़कियां खोल देना चाहिए जिससे की पीड़ित व्यक्ति तक स्वच्छ हवा पहुंच सके और पीड़ित को किसी तरह की सांस लेने में कठिनाई ना हो।
5. यदि सर्दी का मौसम हो तो पीड़ित को सर्दी से बचाना चाहिए उसे किसी पलंग, चटाई पर कम्बल से ढककर लिटाना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति का मुंह न ढका हो।
6. पीड़ित को यदि श्वास लेने में दिक्कत हो रही हो तो कृत्रिम श्वास क्रिया विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
प्राथमिक उपचार के सिद्धान्त (Principle of First Aid in hindi)— प्राथमिक उपचार के सिद्धान्त को 3C कहा जाता है जहा 3C का अर्थ Check, Call और Care होता है।
1. जांच (Check)— प्राथमिक उपचार का प्रथम सिद्धांत यह है की सबसे पहले हमे व्यक्ति की जांच करनी चाहिए की व्यक्ति जिन्दा है या व्यक्ति की मृत्यु हो गई है।
2. कॉल (Call)— व्यक्ति की जांच करने के बाद हमे सहायता के लिए किसी डॉक्टर या एम्बुलेंस को फोन (कॉल) करना चाहिए।
3. केयर (Care)— प्राथमिक उपचार का तीसरा सिद्धांत कहता है की एम्बुलेंस या डॉक्टर के आने तक पीड़ित व्यक्ति की देखभाल करना चाहिए और अगर सम्भव हो तो डॉक्टर के आने तक पीड़ित व्यक्ति का प्राथमिक उपचार करना चाहिए।
प्राथमिक उपचार के उद्देश्य (Purpose of first aid in hindi)— प्राथमिक उपचार के 3P उद्देश्य थे परन्तु वर्तमान में प्राथमिक उपचार के 5P उद्देश्य माना जाता है।
3P= Perserve Life, Prevent Further, Promote Recovery
वर्तमान में प्राथमिक उपचार के 5P उद्देश्य है।
5P= Perserve Life, Prevent Further, Promote Recovery, Pain Relif, Protect the Uncousious
1. जीवन बचाए (Perserve Life)— घटना के बाद पीड़ित व्यक्ति की स्थिति न बिगड़े या जान जाने की संभावना न बने ऐसा ध्यान में रखते हुए तुरन्त सही चिकित्सा देना चाहिए।
2. चोट रोकने का प्रयास (Prevent Further Injury)— पीड़ित व्यक्ति के चोट को रोकने का प्रयास करना चाहिए जिससे की चोट आगे न बढ़े।
3. चोट को रिकवर करे (Promote Recovery)— कुछ इस प्रकार से व्यवस्था करे की चोट को जल्द से जल्द रिकवर किया जा सके।
4. दर्द से राहत (Pain Relif)— दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को दर्द से राहत के लिए उपाय करे। जैसे की ज्यादा खून निकल रहा हो तो उसे किसी साफ कपड़े से बांध दे और पेन किलर के लिए व्यक्ति को कुछ दवा दे।
5. न होने वाला हो उसे रोके (Protect the Uncousious)— जो न होने वाला हो उसे रोकने का प्रयास करे।
प्राथमिक उपचार में जो प्रथम कदम उठाया जाता है उसे ABC कहा जाता है।
A (ए)= वायुमार्ग/एयरवे (Airway)— सबसे पहले श्वसन नली की जांच करे की श्वसन नली खुली है अथवा नहीं।
B (बी)= ब्रेथिंग/सांस लेना (Breathing)— जांच करे की पीड़ित व्यक्ति की सांसे अच्छी तरह से चल रही है अथवा नहीं अगर व्यक्ति को सांस लेने में समस्या हो तो हमे कृत्रिम श्वास विधि का प्रयोग करना चाहिए। कृत्रिम श्वास की क्रियाविधि नीचे दी गई है।
C (सी)= सर्कुलेशन/रक्त संचार की जांच (Circulation)— इस परीक्षण में रक्त स्राव की जांच करनी चाहिए यदि रक्त स्राव हो तो उसे तुरन्त जैसे सम्भव हो उसे बन्द करने का प्रयास करना चाहिए।
विद्युत झटका लगने की गंभीरता किस बात पर निर्भर करती है?
विद्युत झटका लगने की गंभीरता निम्न 3 बातों पर निर्भर करती है।
1. धारा का मान (Value of current)— विद्युत धारा की कितनी मात्रा पीड़ित व्यक्ति को लगी है।
2. समय (Value of Time)— विद्युत धारा की मात्रा कितने समय तक व्यक्ति के शरीर में से प्रवाहित होती रही।
3. वोल्टेज (Voltage)— कितना वोल्टेज का झटका लगा है।
ध्यान रखने योग्य बाते—
1. 90V से अधिक वोल्टेज पर विद्युत का झटका लगता है।
2. शरीर जब शुष्क अवस्था में हो तब 100kΩ–600kΩ तक का प्रतिरोध माना जाता है।
कृत्रिम श्वास क्रिया की प्रमुख विधियां निम्न है—
1. सिल्वेस्टर विधि (Sylvester method)
2. शैफर विधि (Schaffer's method)
3. मुंह से मुंह में हवा भरना (Mouth to mouth resuscitation method)
4. मुंह से नाक में हवा भरना (Mouth to nose method)
1. सिल्वेस्टर विधि (Sylvester method in hindi)— विद्युत झटके के पश्चात कृत्रिम श्वास की सिल्वेस्टर विधि में रोगी को पीठ के बल लिटाया जाता है। इस विधि में पीड़ित को पीठ के बल लिटा कर पीठ के नीचे तकिया लगा दिया जाता है जिससे की उसका सीना कुछ ऊपर उठ जाए और सिर कुछ नीचे हो जाए इस विधि का प्रयोग तब किया जाता है जब पीड़ित के सीने की ओर छाले पड़े हो।
प्रथम स्थिति (First Position)— पीड़ित के सिर के पास व्यक्ति को अपने घुटनो के बल बैठ जाना चाहिए और इसके पीड़ित के दोनो हाथो की आधी मुठ्ठी बांधकर हाथो को सीधा फैला देना चाहिए अब पीड़ित के दोनो हाथो को मोड़कर धीरे-धीरे उसके सीने पर लाना चाहिए।
द्वितीय स्थिति (Second Position)— प्रथम स्थिति में अपने हाथो से पीड़ित के सीने पर कुछ दबाव डाले 2–3 सेकंड बाद दबाव हटा ले और पीड़ित के हाथो को उसके सिर की ओर फैला दे और मुट्ठियां खोल दे।
इस क्रिया विधि को 10–12 बार प्रति मिनट की दर से तब तक दोहराना चाहिए जब तक श्वास क्रिया सामान्य न हो जाए।
जब पीड़ित के सीने पर दबाव डाला जाता है तो फेफड़ों के अंदर की हवा बाहर निकल जाती है और दबाव हटाने से बाहर की ताजी हवा फेफड़ों के अन्दर जाती है इस प्रकार पीड़ित को श्वास लेने में सहायता मिलती है।
2. शैफर विधि (Schaffer's method in hindi)— विद्युत झटके के पश्चात कृत्रिम श्वास की शैफर विधि में रोगी को छाती/पेट के बल लिटाया जाता है। इस विधि में पीड़ित को पेट के बल लिटा कर उसके सिर को किसी एक करवट कर दिया जाता है और पीड़ित के सीने के नीचे पतला तकिया रख दिया जाता है इस विधि का प्रयोग तब किया जाता है जब पीड़ित के पीठ पर छाले पड़े हो।
प्रथम स्थिति (First Position)— पीड़ित के घुटनो के पास अपने घुटनो के बल बैठ जाए अपने दोनो हाथ पीड़ित की पीठ पर इस प्रकार रखे की दोनो हाथ सीधे रहे और चारो उंगलियां आपस में मिली रहे और वे अंगूठे से समकोण बनाएं।
द्वितीय स्थिति (Second Position)— इस स्थिति में आगे की ओर झुकते हुए पीड़ित की पीठ पर भार डाले 2-3 सेकंड बाद दबाव को हटा ले और अपने दोनो हाथों को सीधा कर दे।
इस क्रिया विधि को 10-12 बार प्रति मिनट की दर से तब तक दोहराना चाहिए जब तक कि पीड़ित व्यक्ति की श्वास क्रिया सामान्य ना हो जाए। जब पीड़ित की पीठ पर दबाव डाला जाता है तो फेफड़ों के अन्दर की वायु बाहर निकल जाती है और दबाव हटाने से बाहर की स्वच्छ हवा फेफड़ों के अन्दर जाती है और इस तरह से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में सहायता मिलती है।
3. मुंह से मुंह में हवा भरना (Mouth to mouth resuscitation method in hindi)— मुंह से मुंह में हवा भरने की विधि में पीड़ित को पीठ के बल लिटा लेना चाहिए पीड़ित को लिटाने के बाद पीड़ित के पीठ के नीचे तकिया लगा दे जिससे की उसका मुंह थोड़ा पीछे की ओर लटक जाए इसके बाद पीड़ित व्यक्ति का मुंह अच्छी तरह से साफ कर ले अब उसके खुले मुंह पर महीन कपड़ा रखकर और एक हाथ से उसकी नाक बंद करके अपने मुंह से उसके मुंह में बलपूर्वक झटके से हवा भरे। यह ध्यान रखें कि हवा बाहर ना निकलने पाए और उसके फेफड़े कुछ फूले इसके बाद हवा को बाहर निकलने देने के लिए अपना मुंह हटा ले।
उपरोक्त क्रिया 10-12 बार प्रति मिनट की दर से तब तक दोहराते रहना चाहिए जब तक की उसकी श्वास क्रिया सामान्य ना हो जाए। बलपूर्वक झटके से हवा भरते समय पीड़ित के फेफड़े फूलते है और ताजी हवा अंदर जाती है मुंह हटा लेने पर अन्दर की हवा बाहर निकल जाती है इस प्रकार पीड़ित को श्वास लेने में सहायता मिलती है।
4. मुंह से नाक में हवा भरना (Mouth to nose method in hindi)— इस विधि में पीड़ित व्यक्ति के नाक में किसी अन्य व्यक्ति के मुंह द्वारा हवा भरा जाता है। मुंह से नाक में हवा भरने की विधि को सबसे उपयुक्त विधि माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है की नाक से सांस लेने पर हवा पूरे शरीर में आसानी से चला जाता है। और एक स्वस्थ व्यक्ति सदैव नाक के माध्यम से ही सांस लेता है।
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Very informative post
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